थ्रेड: #ब्रिटिश_रेलवे- असफल निजीकरण मार्गरेट थेचर ने ब्रिटेन में 1979 में निजीकरण का दौर शुरू किया था। उसके पीछे अपने कारण थे। मगर थेचर ने भी रेलवे के महत्व को समझा और ब्रिटिश रेलवे को निजीकरण से दूर रखा।


मार्गरेट थेचर चली गयी और 1991 में यूरोपियन यूनियन के दवाब में ब्रिटेन में रेलवे के निजीकरण का दौर शुरू हुआ। वैसे तो ये टॉपिक बहुत बड़ा है। मगर संक्षेप में समझें तो ब्रिटेन का रेलवे के निजीकरण का कदम फेल साबित हुआ। कैसे?


- निजीकरण के बाद रेल यात्रियों की संख्या में खूब बढ़ोतरी हुई, मगर उतनी नहीं जितनी खरीददारों ने बोली लगाते समय दावा किया था। सरकारी सम्पत्तियों को हथियाने के चक्कर में ऊंची से ऊँची बोली लगाते गए।


लेकिन जब रेल चलाना शुरू किया तो पता चला कि सरकार को फीस देने का भी पैसा नहीं आ रहा। भारत में कुछ ऐसा ही रिलायंस के दिल्ली के एयरपोर्ट मेट्रो में देखने को मिला।


- निजीकरण के बाद यात्री किरायों में भी खूब बढ़ोतरी हुई। मगर फिर भी निजी कंपनियां सस्टेन नहीं कर पायीं। यहां तक कि यात्रियों की संख्या और किराए में बढ़ोतरी के बावजूद सरकार पर रेलवे सब्सिडियों का बोझ बढ़ता ही गया।


- कॉम्पिटिशन को बढ़ावा देने के लिए ब्रिटिश रेलवे का निजीकरण करीब 25 कंपनियों के रूप में किया गया था। मगर एक के बाद एक कंपनियां फेल होती गयी और कंपनियों की संख्या कम होती गई। - जनता भी निजी रेलवे कंपनियों से तंग आ चुकी थी और पुनरराष्ट्रीयकरण की मांग जोर पकड़ रही थी।


किसी तरह 2020 तक निजी कंपनियों ने ब्रिटिश रेलवे को चलाया। मगर कोरोना ने निजीकरण के दावों की सारी पोल खोल दी। लॉकडाउन में ट्रेन्स बंद हो गयीं और साथ निजी रेलवे के अस्तित्व पर संकट आ खड़ा हुआ। सरकार ने शुरुआत में छह महीने के लिए रेलवे को अपने हाथों में ले लिया।


मगर 21 सितम्बर को फ़्रेंचाइज़ सिस्टम पूरी तरह से बंद कर दिया गया। अभी तक ये तय नहीं हो पाया है कि कोरोना ख़त्म होने के बाद ब्रिटिश रेलवे का क्या होगा मगर ये माना जा रहा है कि राष्ट्रीयकरण ही एकमात्र उपाय है।


कुलमिलाकर ब्रिटिश रेलवे के उदाहरण ने ये साबित कर दिया कि निजीकरण तभी कारगर है जब सब कुछ बढ़िया चल रहा हो। क्राइसिस के समय में निजीकरण पूरी तरह से असफल साबित होता है।


ये हमने 2008 की आर्थिक मंदी में भी महसूस किया था जब भारत की अर्थव्यस्था पर इसलिए ज्यादा फर्क नहीं पड़ा क्यूंकि भारत की 75% बैंकिंग सरकारी बैंकों के हाथ में थी। आइये निजीकरण का विरोध करें।


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